जब मिर्जा राजा सवाई जयसिंह जी 1720 में अपने सपनों की नगरी जयपुर को बसाने के बारे में सोच रहे थे तब काफी सोचा विचारी से उन्होंने अपने मित्र और सहपाठी विद्याधर जी चक्रवर्ती को अपना मुख्य नगर योजनाकार बनाया। चूंकि वह बहुत कम उम्र में ही गद्दी पर आ गए थे इसलिए जोश और नए विचारों से हमेशा ओतप्रोत रहते थे। प्रशासन, ज्योतिष, वेधशाला, वास्तुकला, खगोलशास्त्र, भूगोल, ज्यामिति इत्यादि के प्रकांड ज्ञाता को अपने इन्ही विचारों से सम्मिलित एक सुनियोजित नगर बसने का विचार आया और इसकी योजना शुरू हुई।
जब राजकुमार जय सिंह अध्ययन कर रहे थे उस समय भारत में औरंगजेब का शासन था, 1528 में भारत आये पुर्तगाली तब तक मुग़ल दरबार में अच्छा सम्मान ले चुके थे और अच्छे पदों पर आधिपत्य हो चुका था। भयंकर राजनीतिक उथल पुथल का समय था, औरंगजेब का अत्याचार काफी था और आतंरिक विद्रोह फिर से अपने चरम पर था। जिससे उसके पुत्रों में भी आपसी द्वंद्व पैदा हो गया था और गोलकोण्डा के युद्ध के बाद औरंगजेब अधिक समय तक नहीं रह पाए और बहादुर शाह I अगले मुग़ल बादशाह बने। पद ग्रहण करने पर परंपरा अनुसार सभी को अपने उच्च अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ता है उसी प्रकार जय सिंह भी आमेर की गद्दी को ग्रहण करने के बाद औरंगजेब के सामने प्रस्तुत हुए थे जहां से उन्हें पुर्तगाली वास्तुकला और विज्ञान के ज्ञाता ज़ेवियर डे’सिल्वा जैसा मित्र मिला। ज़ेवियर डे’सिल्वा जय सिंह के साथ आमेर आये और विद्याधर जी के सानिध्य में नए नगर के मानचित्रकार बन गए।
नगर का निर्माण कैसे हुआ और किन प्राकृतिक और खगोलिया सन्दर्भों को लेकर इसे बनाया गया उस बारे में चर्चा कभी और पर यहां एक व्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में प्रस्तुत होते है जिनका नगर के इतिहास में भी कुछ खास वर्णन नहीं है परन्तु शहर की बनावट और इसकी इमारतों में उसका प्रभाव देखते ही बनता है। जयपुर को पर्यटकों द्वारा राजपूत-मुग़ल आर्किटेक्चर का एक अद्भुत नमूना माना जाता है जबकि यह शहर राजपूत-मुग़ल-पुर्तगाली शैली से बना विश्व का सबसे पहला सुनियोजित शहर है। इस शहर का यह स्पर्श आया ज़ेवियर डी’सिल्वा के कारण, जिनका परिवार जयपुर की योजना और नियोजन के समय से ही जयपुर में रह रहा है।
ज़ेवियर जैसा की मैंने बताया एक उत्तम वास्तुकार और मानचित्रकार थे की लिगेसी को आगे लेकर आये उनके पुत्र पाड्रो डे’सिल्वा, जो सवाई माधो सिंह जी प्रथम के समय तक नगर नियोजक रहे और फिर आये मार्टिन डे’सिल्वा, जो सवाई राम सिंह जी के समय तक रहे और उन्ही की वजह से आज सभी इस सुनियोजित शहर को सुन्दर गुलाबी नगरी के नाम से जानते है।
इस परिवार के इतिहास के बारे में बहुत अधिक जानकारी दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं होती है परन्तु यह परिवार एक समय पर खवास जी की हवेली के पास गंगापोल के नजदीक कहीं हवेली में रहा करता था। यह सभी बातें वैसे तो खवास जी और राजा माधो सिंह II से पहले की है। जोरावर सिंह गेट और चांदी की टकसाल के बीच कहीं इनकी पारिवारिक कोठी हुआ करती थी और उसी के कारण उस जगह को मार्टिन साहिब का चौक कहा जाता था। एक शहर जो सुनियोजित है में किसी चौराहे का नाम आपके नाम पर होने बेशक एक सम्मान का ही रूप है, पर क्या कभी आपने सुना है जयपुर में कोई मार्टिन साहिब का चौक भी है?
परिवार की महत्ता समय के साथ कम होती गई क्यूंकि शहर को अब नियोजकों, योजनाकारों से अधिक कुशल प्रशासकों और अर्थशास्त्रियों की आवश्य्कता थी। जब नगर नियोजन और नए विस्तार के लिए मिर्जा इस्माइल को बुलाया गया और तो मान सिंह जी ने घाट के पास एक बहुत खूबसूरत उद्यान से साथ कोठी ज़ेवियर जी के परिवार को दे दी जहाँ वे आज तक रह रहे हैं। हाल में वह जगह घाटगेट के पास है।
परिवार के लोग आज भी जयपुर में है और मिर्जा राजा सवाई जय सिंह जी ने ज़ेवियर जी को उत्कृष्ट कार्यों के लिए नींदड़-बैनाड़ की जागीर भी दी थी जो आज भी एक पुर्तगाली परिवार की जागीर है।
पुर्तगालियों का भारत में समुद्री मार्ग से आगमन सबसे पहले हुआ था और उन्होंने सबसे देर तक शासन भी किया, गोवा को पुर्तगालियों से 19 दिसंबर 1961 को आज़ादी मिली परन्तु इन्होने कभी देश को लूटने का प्रयास नहीं किया ये व्यापार करने आये थे, व्यापारी रहे हालाँकि वातावरण की बहत हवा सभी को उड़ा जाती है अतः एक समय यह भी शासन करने लगे परन्तु इनका फैलाव गोवा और बॉम्बे तक ही सीमित रहा, जो परिवार इन स्थानों से अन्य स्थानों पर गए वहीँ के हो रह गए, परम्पराओंऔर संस्कृति में मिल गए बिलकुल पारसियों की तरह।
जब देश आज़ाद हुआ और सरदार पटेल जी जयपुर में सवाई मान सिंह जी से भेट करने और जयपुर का मत्स्य संघ या राजस्थान में विलय करने आये तब डेक्लेरेशन डे वाले दिन मान सिंह जी ने मार्टिन साहिब के चौक का नाम पटेल जी के परम मित्र और देश के एक महान शहीद स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रख दिया जिसे आज आप सुभाष चौक के नाम से जानते है।