महल की पहचान है की उसके चारों ओर सुरक्षा और निगरानी के लिये कंगूरे/टावर हुआ करते है। इसी प्रकार जयपुर के भी महल के चारों ओर इसी प्रकार की मीनारें है। जयपुर शहर को अनेकों सुरक्षा के उपायों को देखते हुए बनाया और बसाया गया है। इसकी बसावट के चारों ओर काफी मोटा परकोटा है। चूँकि राजस्थान में हमेशा बाहरी राज्यों से आक्रमण होता रहा और और यहां पर सुरक्षा के उपाय मैदानी इलाका होने से इतने प्रबल नहीं किये जा सकते है इसलिए मोटी-मोटी दीवारों को बना कर उचित दूरियों पर मीनारें बना कर कई चरणों में सुरक्षा के इंतेजामात है। परकोटा जिसे हाल ही 2019 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया है में आने जाने के लिए काफी चौड़े द्वार हैं जिन्हे पहले रात को 9 बजे बंद कर दिया जाता था।
शहर की समृद्धि इतनी बढ़ी की इंदिरा गाँधी जी के समय से शहर के मुख्य द्वार अभी 2020 में आई कोरोना महामारी तक बंद नहीं करने पड़े थे।
मीनारों को भी चरणबद्ध तरीके से बनाया गया जो मीनारें सबसे बाहर थी उनमे हथियार भंडारण का स्थान था और सबसे अंदर की मीनारें रात्रिकालीन घुसपैठ, गुप्तचरों, चोर और बदमाशों की निगरानी के लिए थी। इन्ही सब मीनारों में महल के पश्चिम दिशा में एक बहुत ही सुन्दर और कलाकृत्यों से भरी मीनार है, यह खूबसूरत बुर्ज जिसके मंडप की दीवारें और छत चीनी मिट्टी की नीले टाइलों से बनी है का उपयोग तीज-गणगौर के मेले देखने के लिए जयपुर के अंग्रेज रेजिडेंट और अन्य गोरे अफसर किया करते थे। चीनी मिट्टी से बने उत्पादों से सजे होने के कारण इस मीनार को चीनी की बुर्ज कहा जाता है। जयपुर का प्रसिद्ध चौगान स्टेडियम इसी चीनी की बुर्ज के नीचे की ओर बना हुआ है। चौगान उस समय मेलों और त्योहारों का जमघट बिंदु हुआ करता था अतः चौगान में लगने वाले सारे मेलों को राजपरिवार यहीं से देखता था।
जयपुर में कपड़ों का अत्यधिक व्यापर हुआ करता था जिसके लिए बहुत से प्राकृतिक रंगों और रेशों को चीन से मंगवाया जाता था। राज्यों में आपसी व्यापारिक सम्बन्ध बहुत बढ़िया था और महाराजा माधो सिंह जी के पास चीनी रेशम से बने अनेकानेक वेशभूषायें है जिनका प्रदर्शन सिटी पैलेस के सवाई मानसिंह म्यूजियम में किया गया है। इसी क्रम में व्यापारियों द्वारा चीन से चीनी मिट्टी और बोन चीन सिरेमिक को आयत कर शिल्पकारी की जाती रही है। इसी के सिलसिले में किसी जन्मदिवस या त्योंहार के अवसर पर अवसरवादी व्यापारी ने राजा को इन सजावटी चीजों की भेंट दी होगी या हो सकता है जयपुर एम्पोरियम ने ही इस बुर्ज को मेले और त्योंहार देखने के लिए खास रूप से सजाया हो।
संग्रहालय के अधिकारियों और संग्रहालय के चित्रों को देखने से यह साबित होता है की चीनी की बुर्ज एक समय में काफी पसंद की जाती थी, सवाई जय सिंह जी के पुत्र सवाई ईश्वरी सिंह जी को एक चित्र में चीनी की बुर्ज पर बैठा दिखाया गया है जिसमे वह काले फूलों की बूटियों वाले पश्मीने का ‘आतम सुख’ पहिने हैं, आतम सुख को आराम के समय शरीर को गर्मी में हवादार बनाये रखने के लिए पहना जाता था। आज कल पहने जाने वाले कम्फर्टेबले क्लोथ्स की श्रेणी में आने वाले कपड़ों के मुताबिक ही यह एक राजसिक वेश है। इस चित्र में बुर्ज के नीचे ही एक गोलाकार घेरे में शेर बंधा है और उस पर सब ओर से शिकारी कुत्तों का दल झपट रहा है। बाकि चारों ओर बने सभी बुर्ज दीवारें और मैदान महराजा के मेहमानों और दूसरे तमाशबीन लोगों से भरी है । एक मस्त हाथी ने बखेड़ा मचा दिया है और उसके द्वारा कुचले जाने के डर से लोग इधर उधर भाग रहे हैं और अनेक लोग महावत के साथ मिल कोड़े और कपड़ों की सहायता से उसे काबू करने में लगे हैं; मेरा व्यक्तिगत रूप से मनना है की यह हाथी कोई और नहीं चतरगज ही है, जो राज्य का सबसे उन्मुक्त हाथी हुआ करता था, जिसके नाम से आज भी शहर में चतर की आड़ नाम से छोटा द्वार है, इस चतरगज का ठान यहीं था।। यह चित्र आज भी आपको सिटी पैलेस में शस्त्रखाने की ओर जाते समय दीवार पर टंगा मिल जायेगा।
महाराजा सवाई मान सिंह जी के पश्चात् से चीनी की बुर्ज का महत्त्व कम होता गया, इसमें राज परिवार या किसी अन्य की कोई भी लापरवाही नहीं है समय ने परिस्थितियों को ही ऐसा बनाया। मान सिंह जी के पुत्र व भावी राजा भवानी सिंह जी सेना में अपना कर्त्तव्य निभाने चले गए। आमजन की व्यस्तता के कारण धीरे धीरे मेलों की चमक कम होने लगी और इसी व्यस्तता और अनदेखी के कारण राजपरिवार मेलों को चीनी की बुर्ज से देखने की परम्परा को उस प्रकार कायम नहीं रख पाया। कुछ समय पहले से जयपुर के तत्कालीन महाराज सवाई पद्मनाभ सिंह पुनः चीनी की बुर्ज से मेलों को देखने की परंपरा को चालू किये हैं जिससे उसकी रौनक जो वो इतने सालों में खो चुकी थी वापिस पा रही है। हालाँकि देखने से मालूम होता है की उसकी सजावट भरी टाइल्स और पेंट तो लगभग उखड चुका है और पास में ही एक मस्जिद की मीनार के और आ जाने से वो उस क्षेत्र की एकमात्र चक्षु लोभीनी मीनार नहीं रह गई है। मस्जिद की मीनार भी विशेष है जो की अपने आप में एकमात्र घुमते गुम्बद की मीनार है रात्रि में उसका गुम्बद घूमता हुआ दिखता है।
नीचे के मैदानों में पालतू मवेशियों को बांधा जाता है और मीनार के नीचे सेनेटरी आइटम्स का मार्किट है। सफाई और स्वच्छता के न होने की वजह से यहां लोगो का पर्यटन के प्रयोजन से आना लगभग खत्म ही हो गया है और रख रखाव के आभाव में दीवार और बुर्ज का बाहरी इलाका किसी को भी पसंद नहीं आता है और न ही किसी का ध्यान उस खूबसूरत खड़े बुर्ज के आतंरिक हिस्सों में जा पता है।