खवास जी का रास्ता चांदी की टकसाल जयपुर
इस रास्ते की खास बातों में कुछ चीजें आती है
- यहां पर सबसे पुराना गद्दों का बाजार है।
- यहां जयपुर का सबसे प्रसिद्ध साइकिल रिक्शा और व्हीलचेयर ट्राइसाइकिल बनाने वाला है।
- सबसे महत्वपूर्ण यहां जयपुर राज के सबसे खास आदमी की हवेली है जिसके खास होने के कारण रास्ते का ही नाम खवास जी का रास्ता पड़ गया
खवास जी या फिर कहे की श्री बाला बक्स खवास(ढूंढाड़ी)/खास सवाई मानसिंह जी द्वितीय के राजस्व अधिकारी थे।
महाराजा माधोसिंह के विशेष कृपापात्र खवास बालाबख्श को उन्होंने चौकीखाने में ही एक हवेली आवंटित कर रखी थी क्योंकि वह महाराजा के शयन करने तक उनके साथ छाया की तरह लगा रहता था; जो आज खवास जी की हवेली के नाम से चांदी की टकसाल पर है।
महाराजा माधो सिंह जी के समय खवास जी कपड़द्वारे का काम देखते थे। उन्हे “हुक्म श्री जी जबानी खवास बाला बख्श” के नाम से सभी जानते थे पर इसी लगाव का बाद में खामियाजा उठाना पड़ा और कपड़द्वार के गबन का कुसूरवार उसे ही ठहराया गया। उस समय मोती डूंगरी की गढ़ी में खूंखार जानवर घूमते थे और वह एक जंगल था और खवास जी वहां नजरबंद रहे।
सवाई जगतसिंह जी के समय जाति से दर्जी रोडाराम खवास प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे थे और उन्हे लोग “सुई शमशेर गज बहादुर खवास रोडाराम” कहते थे। पहले आज का दुर्गापुरा, रोडाराम की जागीर होने के कारण रोडपुरा कहलाता था। बाला बख्श जी उन्ही के वंशज थे और माधोसिंह जी की निकटता के कारण इनका इतना जोर हो गया था की हर महकमे में हुक्म श्रीजी जबानी खवास बाला बख्श, मार्फत लाला हरिनारायण, बजरिए धलैत चलता था।
18 मई 1920 को महाराज की तबियत नासाज होने के कारण प्रीतम निवास में खवास बाला बख्श ने महाराजा की ओर से बालानंदजी के महंत ने भेंट करी और शाम को 159 कैदी छोड़े गए और रात को प्रीतम निवास में सरदारों की गोठ का आयोजन किया गया, फतेह का टीबा पर हमेशा की तरह सलामी की तोपें छोड़ी गई।
खवास जी के रियासत दिनचर्या के अनेकों किस्से है पर उनके जीवन का अंतिम पड़ाव सही नहीं रहा। पुत्र और पुत्रियों के बीच जमीन और जायदाद को लेकर विवाद रहा वे खुद भी खूंखार जानवरों के बीच नजरबंद रहे।
आज खवास जी की हवेली बंद पड़ी है, यद्यपि कुछ समय से यहां के एक बड़े और अविवादित भाग में होटल चल रहा है। जगह के अभाव के कारण यह एक 10 कमरों का बहुत साधारण सा होटल बन कर रहा गया है, और अपने अंदर विभिन्न प्रकार के फ्रास्कोस को सहेजे है, आर्कियोलॉजी को जहां ध्यान देना चाहिए पर वे दे नहीं पा रहे है, रामप्रकाश की तरह ये भी विवादित पड़ी है और आज इसके साथ में मेरठवाला और गद्दों का व्यापार खूब चल रहा है।