बड़े और प्रसिद्द शहरों को बनाने और बिगड़ने में मुख्य रूप से उसके अपने ही लोगों का हाथ होता है हालाँकि इतिहास में ऐसे भी अनेक उदहारण हैं जहाँ शहर किसी बाहरी आक्रांता के कारण उजड़े हैं, बाहरी व्यक्ति के कारण शहरों का बसना परीकथाओं में ही देखा गया है या फिर सपनों का देश अमेरिका एक इसका उदहारण है।
इसी तरह शहर के बन जाने और पर्याप्त रूप से बस जाने के बाद सवाई जय सिंह भी आमेर के किले को छोड़ कर नगर वाले नए किले में रहने आ गये यह बात कुछ 1725 के आस पास की होगी। महाराजा का विवाह हुआ उदयपुर की राजकुमारी चंद्रकुंवर बाई से और चूँकि यह एक राजनीतिक और सुलह सम्बन्ध था तो इसकी कुछ शर्तें थी जिसमे मुख्य शर्त यह थी की यह रानी ही पटरानी बनेगी और पूर्व विवाह व भावी विवाह का फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हर त्योंहार को राजा इन्ही के साथ मानाने को बाध्य है एवं हर युद्ध से लौट कर वह सबसे पहले मेवाड़ी रानी या सिसोदिया रानी के पास ही आएगा। इन शर्तों के गंभीर और भावी राजनीतिक परिणाम रहने वाले थे।
यहीं पर गौरतलब है की मेवाड़ से रानी, दहेज़, पडतायतों और दसियों के साथ जयपुर आया एक खोजा (हिंजड़ा), उस समय चंद्रमहल के साथ बनी जनानी-ड्योढ़ी में राजा की 27 रानियां थी और इन शर्तों के अनुसार सिर्फ अंदेशा ही लगाया जा सकता है की किस राजनीतिक परिवर्तन को राजा ने अपनी शर्तों और विवाह के साथ स्वीकार कर लिया था। उस समय महिलाओं की समाज में कोई अच्छी स्थिति नहीं थी वैसा ही राजतंत्र में भी था इस कारण जनानी ड्योढ़ी के उस समय के दस्तावेज उपलब्ध नहीं है क्यूंकि उन्हें लिखने की जरूरत कभी महसूस ही नहीं हुई। पहले ही रानियों की ख़राब स्थिति और उसमे सिसोदिया रानी की यह शर्तें इन्होने जरूर काफी हंगामा खड़ा किया होगा।
ज्ञात दस्तावेजों के अनुसार मेवाड़ से रानी से साथ आया खोजा जनानी ड्योढ़ी का प्रमुख खोजा बन गया, जनानी-ड्योढ़ी के रख रखाव और व्यवस्था के लिए खोजों को ही रखा जाता था; राजा व सम्बंधित राजकुमार के अलावा किसी और पुरुष का प्रवेश वर्जित था।
दस्तावेज कहते है की खोजा पहले मुग़ल हरम में हुआ करता था परन्तु जयसिंह के पिता मिर्जा राजा विष्णु सिंह उसे आमेर ले आया था। यह भी स्पष्ट होता है की खोजे ने मथुरा-वृन्दावन में जयपुर की ओर से अच्छी संपत्ति खरीदी थी। उसकी अपनी जायदाद भी काफी थी जो उसके मरने के बाद पुनः राज की हो गई थी। पोथीखाने के कई चित्रों पर उसकी मोहर है अर्थात वह एक कुशल चित्रकार भी था जो अधिकतर समय जननी-ड्योढ़ी की महिलाओं के चित्र बनाया करता था।
इस खोजे का नाम था पन्ना मियां जिसका बनवाया हुआ सुप्रसिद्ध कुंड आमेर में अम्बिकेश्वर जी के मंदिर के पीछे बिहारी जी के मंदिर के पास बना हुआ है जिसका नाम है पन्ना मियां का कुंड अपभ्रंश में इसे पन्ना मीणा का कुंड भी कहा जाता है चूँकि आमेर में मीणाओं का हमेशा बोलबाला रहा है इसलिए इस थ्योरी को भी कुछ लोगो द्वारा मान लिया गया है परन्तु इसका सही नाम पन्ना मियां का कुंड ही है। बाहर वाले इसे सीढ़ीनुमा कुंड या जयपुर’स फेमस स्टेप वेल के नाम से जानते है। क्या आपको हमारे समाज को देखते हुए यह उम्मीद थी की एक हिजड़े का बनवाया हुआ कुंड विश्व में आज इतना प्रसिद्द होगा।
चूँकि पन्ना मियां जनानी-ड्योढ़ी का सिर्फ तुच्छ समझी जाने वाली प्रकृति का व्यक्ति था इसलिए उसके बारे में लिखित दस्तावेजों का उपलब्ध होना असंभव है परन्तु चूँकि वह प्रभारी खोजा था इसलिए उसके किये कुछ कामों का रिकॉर्ड मिला है जिससे ये उपर्लिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं।
कभी भी अब आमेर जाएँ और पन्ना मिया कुंड पर कुछ देर रुकें और देखें की एक खोजे का जयपुर पर्यटन में कितना योगदान है और कल्पना करे कि उसने किस प्रकार किन संघर्षों को झेल कर अपना नाम एक शहर के इतिहास में दर्ज करवाया है।