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Pundarik Ji ki Haveli and Pondrik Park

जब आप छोटी चौपड़ से ब्रम्हपुरी की ओर या सूरखुड्डी से अंदर ही अंदर ब्रम्हपुरी आते हो तो जागेश्वर महादेव या ब्रम्हपुरी बस स्टैंड से पहले दाएं हाथ और गैटोरे या नहर के गणेश से छोटी चौपड़ जाते हो जागेश्वर महादेव के बाद बाएं हाथ को एक बंद पड़ी हवेली देखने को मिलती है जो आमतौर पर ताला लगे बंद पड़ी रहती है। बाहर से बड़ी ही साधारण दिखने वाली ये हवेली एक समय शहर से सबसे मुख्य आदमी का निवास स्थान हुआ करती थी। इस हवेली का फैलाव एक पूरी चौकड़ी में हैं और हो भी क्यों न आखिर इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति महल के उत्तर में चंद्रमहल से बस कुछ ही छोटे क्षेत्रफल में बनी हवेली में रहता था, इस हवेली में बाग़, मंदिर, बड़े-बड़े चौक चौबारे सब कुछ बहुत ही बढ़ चढ़कर थे।

यह महत्वपूर्ण व्यक्ति थे रत्नाकर पोंड्रिक, यह रत्नाकर जी पुण्डरीक साहित्याचार्य, दार्शनिक, तांत्रिक, मंत्रशास्त्री, अन्यान्य भाषाविज्ञ, धर्मशास्त्रज्ञ तथा अन्य कतिपय वैदिक याग-विशेषज्ञ एवं महाराज सवाई जयसिंह के गुरु थे।

Shree Ratnakar Pundarik Ji

मूलतः रत्नाकर पुण्डरीक के बारे में कहा जाता है की वे बंगाल से थे और कुछ मत कहते है की वे महाराष्ट्रियन थे। उनका वास्तविक नाम रत्नाकर भट्ट था, वे ज्योतिष, तंत्र और दर्शन में अपना विशिष्ट और अग्रिम अध्ययन करने बनारस आये थे जहाँ जयसिंह से उनकी मुलाकात हुई और वे उनकी ज्योतिष, शास्त्र और तंत्र की उत्कृष जानकारी से प्रभावित हो उन्हें आमेर ले आये थे फिर उन्होंने उन्हें राजपुरोहित व अपना गुरु बना लिया। जयसिंह जी ने ही उन्हें पुण्डरीक की उपाधि प्रदान करी थी। पुण्डरीक शब्द का अर्थ है जो श्वेत है सांख्य दर्शन में प्रकृति का सत रूप श्वेत है अतः पुण्डरीक का अर्थ हुआ वह जो पूर्णतः सत है जो पूर्णतः पवित्र है, जो कमल के सफ़ेद फूल की तरह श्वेत है और उसी की तरह पवित्र भी है।

महाराजा जयसिंह ने वाजपेय यज्ञ का अनुष्ठान इन्ही से करवाया था और वह यज्ञ सम्वत 1765 सन 1708 में आमेर में हुआ था। इसके पश्चात् श्री रत्नाकर जी ने सुप्रसिद्ध पुण्डरीक यज्ञ किया था। यूँ तो श्री रत्नाकर जी ने समय-समय पर अनेक यज्ञ किये जिनका उन्होंने स्वयं उल्लेख किया है, उनकी महत्वकांक्षी योजना थी की महाराज सवाई जयसिंह अश्वमेध यज्ञ करें परन्तु उनका देहांत सम्वत 1777 में ही हो गया था। अतः यह यज्ञ इनकी उपस्थिति में पूर्ण न हो सका। अश्वमेध यज्ञ की सम्पन्नता की कामना के लिए महाराज को अनेक अन्य विद्वान् बुलाने पड़े तत्पश्चात यह यज्ञ पूर्ण हो पाया इन सभी विद्वानों ने पुनः अग्निहोत्र किये इन्ही आमंत्रित विद्वानों में गुजरती प्रश्नवर और औदीच्य पञ्चद्रविड़ ब्राह्मण (हमारे पूर्वज) भी थे। इनके समय में सर्वमेध, पुरुषमेध, सोमयोग तथा राजसूय यज्ञ होने का विवरण मिलता है।

Jaisingh-Kalpadrum

रत्नाकर के बारे में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उन्होंने जयसिंह कल्पद्रुम नाम के काव्य की रचना की जिसमे सवाई जयसिंह के वंश के वर्णन के साथ सूर्यवंश का वर्णन, ज्योतिष और ज्योतिषीय गणनाओं जिनमे ग्रहों की गति, तिथि, वार, नक्षत्रों, राशियों के बनने, त्योंहारों और सभी पर्वों के समय के निर्धारण, उनके तिथि और समय निर्णय, अधिक मास, तिथियों के घटने बढ़ने, सूर्य चन्द्रमा की गतियों व देवी की अनेक सिद्धियों और आराधना के बारे में लिखा गया है। यह एक हस्त लिखित शास्त्र है और इस प्रकार के अनेक हस्तलिखित शास्त्र पाण्डुलिपि के रूप में मेरे पास संकलित है, इन सभी के वास्तविक रूप के लिए पोथीखाना अथवा राजकीय पुस्तकालय के निदेशालय से अनुमति लेनी होती है।

पुण्डरीक जी की दैनिक दिनचर्या के बारे में कहा जाता है की वे जब आमेर रहते थे तब से ही नित्य स्नान के बाद अम्बिका वन या आम्बेर के ईश्वर अम्बिकेश्वर के दर्शन करने जाया करते थे यह नियम उनका तब भी चला जब वे नए बसे शहर जयपुर में अपनी नयी हवेली में रहने लगे, बिना अम्बिकेश्वर जी के दर्शन करे वे अन्न ग्रहण भी नहीं करते थे।

Shree Ambikeshwar Mahadev Temple

एक जनश्रुति यह भी कहती है की जब वृद्धावस्था में उनसे अम्बिकेश्वर जी के दर्शन करने जाना संभव नहीं हो पाया तब उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया था अपने भक्त की यह स्थिति देख कर महादेव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दे अपने उनकी हवेली के पास ही स्थित होने का व उस स्थान के बारे में बताया जहाँ वे विराजमान हैं, अगले दिन सुबह जब उनकी बताई जगह पर खोजा गया तो एक जाग्रत स्वयंभू शिवलिंग वहां विद्यमान था और उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया उस समय से वे उस जाग्रत स्वयं-भू जागेश्वर महादेव के दर्शन कर अन्न ग्रहण करने लगे। मंदिर निर्माण के समय से ही विद्वान् गुजराती प्रश्नवर ब्राह्मण को उस मंदिर का रख-रखाव व पूजा अर्चना करने का कार्य सौंपा गया व वह आज भी वही कार्य कर रहे हैं। जागेश्वर व अम्बिकेश्वर दोनों ही शिवलिंग स्वयंभू है इन मंदिरों की यात्रा कर शिवलिंगों पर खुदाई से होने वाली चोट के निशान व पर्वतों के अंश देखे जा सकते हैं।

Shree Jageshwar Mahadev Temple

पौंड्रिक जी की हवेली को सवाई जयसिंह ने अपने चंद्र-महल के अनुसार ही सजाया था। जिस प्रकार चंद्रमहल में 18 वी सदी के जयपुर शैली के भित्ति चित्र, धातु से रंगाई के कार्यों को देखा जा सकता है उसी प्रकार पोंड्रिक जी की हवेली में भी इनसभी को करवाया गया था। पौंड्रिक जी की पूरी हवेली ही इन भित्ति चित्रों से भरी हुई है, जिनमे अनेक प्राकृतिक और मानवीय दृश्यों को दिखाया गया है। इन दृश्यों में शाही दरबार, गणगौर-तीज के मेले, दरबारी गतिविधियों के चित्र, होली-दीपावली उत्सव, सेना के आवागमन और लड़ाइयों के दृश्य, महल के अनेक हिस्सों के दृश्य, संगीतज्ञ, दरबार की संगीत सभा, महाराजा और उनकी रानियों के सिंहासनारूढ़ चित्र, वृन्दावन के चित्र, रास लीला, महाराजा जगत सिंह के रस कपूर के साथ चित्र, कुछ अंतरंग दृश्य बनाये हुए हैं, साथ ही आम, नीम, बेर, खेजड़ी, पीपल, बरगद के पेड़, अनेक फूलों और फलों के पेड़-पौधे-बेलें। तुलसी, अश्वगंधा, गूलर, बबूल, शतावरी आदि आयुर्वेदिक पौधे के चित्र, अनेक जानवरों व पक्षियों के चित्र सभी कुछ उस हवेली में बना हुआ था। हवेली का उद्यान बड़ा ही सुन्दर था जिसमे भी अनेक छतरियों में भित्ति चित्र बनाये गए थे। यह उद्यान ताल कटोरे से सिर्फ एक पाल भर ही दूर था। बड़ी ही उत्तम और सुख निवास हवेली थी पुण्डरीक जी की, उनके पश्चात उनके पुत्र और पौत्रों ने उस सुख को बहुत भोगा है।

इस हवेली के वर्त्तमान अवशेष जो अब राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित है। वस्तुतः वे एक बहुत बड़े आवासीय परिसर का केवल दक्षिण पश्चिम भाग है। यह एक दोमंजिला भवन है जिसके अंदर छोटे छोटे कक्ष है। यह भवन ऊपरी मंजिल पर बने हुए भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है जिसमे राजकीय दरबार की संगीत की महफ़िल, गणगौर-होली के पर्व और मेले, सेना के पलायन और राजसी जुलुस के चित्र बने हुए हैं।

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आज यह हवेली का जो दक्षिण पश्चिम भाग है उसे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षित किया हुआ है, बाकी का हिस्सा आज ख़त्म होके कॉलोनी बन चुका है और पोंड्रिक पार्क अभी भी है जो की एक पब्लिक पार्क बन चुका है उसकी छतरियों की फ्रेस्कोस आज खत्म हो चुकी है, अब तो हाल ये है के नगर निगम जयपुर हेरिटेज अब इसे एक भूमिगत पार्किंग बनाने जा रहा है जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की जा रही है और उसका पूर्ण रूप से विरोध किया जा रहा है।

The Remnants of Paundrik/Pondrik Haveli

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148 replies on “Pundarik Ji ki Haveli and Pondrik Park”

महेंद्र श्रीवास्तव सेवानिवृत्त अध्यापक जिला परिषद इण्टर कालेज पाली ललितपुर उ०प्र०says:

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धन्यवाद।

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