आज चलते हैं महल के पास और जयपुर की विश्व प्रसिद्ध जगह पुरोहित जी के कटले पर
पुरोहित जी का कटला बड़ी चौपड़ पर हवामहल के मुख्य द्वार के सामने स्थित है।
पुरोहित जी की रियासत के साथ निकटता का और उनकी महत्वपूर्णता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की महल से सबसे नजदीक, बड़ी चौपड़ पर और वह भी हवामहल के द्वार के सीधे सामने एक ही रिहाइश थी और वह था “सर गोपीनाथ पुरोहित” का निवास जिसे आज आप पुरोहित जी का कटला या कटला के नाम से जानते हो।
औपचारिक जलसों में माधोसिंह जी के सामने सबसे छोटी सीट पर होम मिनिस्टर सर पुरोहित गोपीनाथ और खास मर्जीदान खवास बाला बख्श बैठा करते थे।
जयपुर राज्य की दुग्धशाला हुआ करती थी जिन्हें ग्वालेरा कहा जाता था यह विचार पुरोहित जी को बड़ा भाता था। वे और महाराज रोज सुबह नगर में जनानी ड्योढी के सामने लंबे चौड़े नोहरे पर स्थित ग्वालेरा पर दर्शनी से, गायों बछड़ों से भरे पूरे ग्वालेरा को देखते हुए दूध पीते थे। राजमहल की दूध की आवश्यकता भी ग्वलेरा से ही पूरी होती थी। चुकीं यहां जगह काफी थी तो राज की ओर से होने वाले बड़े बड़े “हेडे” हजारों लोगों के सामूहिक भोज का आयोजन भी यहीं हुआ करते थे जो पहले हवामहल और गोवर्धन नाथ जी के मंदिर में हुआ करते थे।
पुरोहित गोपीनाथ जी की डायरी कहती है की 26 जनवरी 1921 शाम साढ़े चार से पांच बजे तक रावराजा (दासी पुत्र) बड़ा तेजसिंह के सबसे बड़े बेटे की बारात में गया जो सरगाह सूली के सामने राणावत जी के मंदिर से आरंभ होके जनानी ड्योढी के सामने ग्वालेरा तक गई थी। ग्वालेरा से लौट कर बड़े बेटे जिसकी बारात जा रही थी के ज्येष्ठ पुत्र की बारात में शामिल हुआ साढ़े पांच से छः बजे तक। ये शादी दो बहनों के साथ हुई जो दो अलग अलग माताओं की बेटियां है, अर्थात पिता और पुत्र एक दूसरे से साडू हुए और दो बहने सास बहू। दोनो ने एक ही पोल पर तोरण मारी, ऐसे विवाह यहां न कभी देखे गए न सुने गए, ये विवाह सचमुच ही अनोखे और अमान्य थे।
खबर का कारखाना या महकमा राजा का इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट था जिसे पुरोहित जी अपने समय में हेड किया करते थे। अखबार तो थे नहीं पर खबर के पर्चे बड़ी फुर्ती और मुस्तैदी से आते थे और सभी खुरापाती और बदमाश डरा करते थे की था पर्चा पुरोहित जी या राजा के हाथ न लग जाए। इन सभी का दस्तावेज पुरोहित जी की डायरी में है जैसे 1914 का एक पन्ना कहता है की इत्तला हुई की एक शख्स के ट्रांसपोर्ट की गाड़ी से बाजार में किसी को चोट लगी। 10 अप्रैल का पर्चा कहता है की एक औरत ने मुशरिफ (कस्टम का दारोगा) को किसी व्यक्ति को शहर के अंदर ले जाने के लिए चिट्ठी सौंपी थी (तब शहर के दरवाजे 11 बजे बंद कर दिए जाते थे)। 1923 में आदेश हुआ चांदपोल दरवाजे को रात भर खुला रखा जाए।
11 अप्रैल 1914 को पर्चा मिला की अंग्रेज रेजिडेंट कैंप के पास मधुमक्खी का छत्ता टूट गया और सभी को डंक लगे है
एक दिन गौरीशंकर नामक खबरनाविस (क्राइम रिपोर्टर) से पर्चा मिला की चौमू के ठाकुर देवीसिंह की मोटर से एक भिखारिन की टक्कर हो गई है। एक दिन पर्चा आया गलता में दो ब्रह्मणियां डूब कर मर गई है और यह एक फौजदारी पर्चा था।
महाराजा मानसिंह की नाबालिगी (1922-31) के दौरान स्टेट कौंसिल के वाईस प्रेसिडेंट और महाराजा माधो सिंह (1907-1922) के समय में कौंसिल मेंबर रहने वाले सर गोपीनाथ पुरोहित जयपुर के सबसे पहले एम. ए. भी थे।
चूंकि पुरोहित जी होम मिनिस्टर थे तो उनका संबंध इन सब चीजों से आजीवन रहा और मृत्यु के बाद कोई पारिवारिक व्यक्ति कुछ खास नहीं कर सका।
इस संबंध में दो विचार दिए जाते है एक कहता है की पुरोहित जी के पुत्र के कोई संतान नहीं होने के कारण उनकी हवेली को उनके रिश्तेदारों ने बांट लिया और राजशाही खत्म होने के बाद सभी बिखर गए और बंटवारे से हुए हिस्सों में आज का बाजार है
दूसरा कहता है की पोते के न होने के कारण और समानांतर में राजशाही के स्वामित्व के चले जाने के कारण हवेली को अवसरवादी लोगों ने बांट लिया और आज उस बनते हुए हिस्सों में बाजार चलता है।
सच दोनो में से जो भी हो पुरोहित जी की लैगेसी को ऐसा तो न ही होना चाहिए था परंतु समय से बलवान कोई नहीं है। आज पुरोहित जी का कटला जैसा भी है कम से कम बाजार होने के कारण सहेजा हुआ है वरना यह भी शायद कहीं खवास जी की हवेली की तरह बंद पड़ा होता।
जाइए और दुकानों के अलावा हवेली को भी निहारिए और महसूस कीजिए की एक समय इस स्थान पर राज्य का होम मिनिस्टर कैसे रहा करता होगा।