चलिए आज शुरू करते है जयपुर की ही एक बहुत प्रसिद्ध जगह नारायण सिंह सर्कल से, राजापार्क में भी एक रोड का नाम ठाकुर नारायण सिंह रोड है। आखिर क्यों यह नाम इस जगह को दिया गया।
नारायण सिंह सर्कल पर है नारायण निवास होटल जो पहले नारायण निवास हवेली हुआ करता था। इसी नारायण निवास के नाम से इस सर्कल का नाम प्रसिद्ध हुआ और यह नारायण निवास कानोता के ठाकुरों का राजधानी निवास हुआ करता था।
गौरतलब, जिस तरह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगभग सभी राज शासित प्रदेशों के निवास है जैसे राजस्थान हाउस (GOR), हैदराबाद हाउस (GOI), कोटा हाउस, बीकानेर हाउस (RTDC), धौलपुर हाउस (UPSC)।
इन सभी हाउसेस का निर्माण इन्ही राज्यों के राजाओं द्वारा करवाया गया था और जब वह ब्रिटिश पार्लियामेंट में किसी काम से आते थे या दिल्ली किसी भी काम से आते थे अपने इन्ही हाउसेस में रुका करते थे। स्वतंत्रता के बाद इन सभी को राजाओं ने स्वेच्छा से राज्य व केंद्र सरकार को इस्तेमाल के लिए दे दिया था और आज वह सरकारें इनका अपने कार्यालयों और अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के रेस्ट हाउस के रूप में प्रयोग कर रहे है।
उसी प्रकार राज्यों में उनके स्वामित्व में आने वाली जागीरों के जागीरदारों के आवास हुआ करते थे। इसी के तहत जयपुर जो की एक बहुत महत्वपूर्ण राज्य हुआ करता था में इनकी 18 जागीरों के हाउसेस है जिनमे से कुछ प्रसिद्ध निवास स्थान है सीकर हवेली (सीकर हाउस), चौमू हवेली (चौमू हाउस), अलसीसर हवेली, मंडावा हवेली, समोद हवेली, उनियारा हवेली, नायला हवेली (नायला हाउस) और नारायण निवास हवेली अतिरिक्त।
क्या आपने इस बात पर गौर किया की सभी हवेलियों के नाम उनके स्थानों के नाम पर या जागीरों के नाम पर है परंतु इस नारायण निवास का नाम एक व्यक्ति ठाकुर नारायण सिंह कानोता के नाम पर है। कुछ तो होगा ही ऐसा की एक हवेली का नाम व्यक्ति के नाम पर है, ओरल हिस्ट्री में किसी वंश का नाम या किसी स्थान का नाम व्यक्ति के नाम पर तभी दिया जाता है जब उस व्यक्ति का जीवन तेजस्वी रहा हो।
इसके सैंकड़ों उदाहरण आपके सामने है अतः उल्लेखित करना सही नहीं होगा
ठाकुर नारायण सिंह जी का जन्म कानोता ठिकाने में जनवरी 1851 में हुआ और वे 1908 से 1924 तक कानोता ठिकाने के ठाकुर और जयपुर राज्य की पुलिस के चीफ रहे। उस समय जयपुर के राजा मिर्जा राजा सवाई माधोसिंह२ जी और मिर्जा राजा सवाई मानसिंह२ जी रहे।
राजा माधो सिंह जी के साथ उनकी बहुत जी घनिष्ट मित्रता थी और दोनो ही राज्य की व्यवस्था को अच्छे से संभालते रहे।
राजधानी की सुरक्षा अतिमहत्वपूर्ण कार्य था और नारायण सिंह एक बहुत ही कुशल प्रहरी थे। उनके खौफ का मंजर इतना अधिक था की डकैत और चोर राजधानी के आस पास आते भी नहीं थे। वे शहर के चप्पे चप्पे से अवगत थे और खवास जी की मदद के लिए कई बार राजस्व वसूली के लिए भी जाते थे।
आर्काइव 1: 17 सितंबर 1914; कहा जाता है एक बार नारायण सिंह जी आमेर की ओर अपने बुर्ज पर प्रहरियों का अवलोकन करने गए और वहां से उन्होंने शिवकुंडा के कुंड से नहाकर किसी को निकल कर जाते देखा। उन्हे शक हुआ की इस समय यह कौन है जो इतनी रात गए यहां से निकल रहा है और इसके पास घोड़ा भी है। चूंकि डाकू राज्य के आस पास भी नहीं भटकते थे तो उन्हें शक हुआ और वे उस तरफ बढ़े और पहाड़ी क्षेत्र होने से सामरिक लाभ रहा और सीधा उन्होंने उस व्यक्ति की गर्दन को पकड़ा और पूछा कुण हो?
वह व्यक्ति भी उन्ही को तरह काफी लंबा चौड़ा था परंतु उसने सीधे ही हथियार डाल दिया और बोला अन्नदाता म्हाने छोड़ द्यो मैं जाणु हूं थे कुण हो, थाके अलावा कोई म्हाकी गुद्दी कोन पकड़ सके।
बाद में उसने अपनी पहचान डाकू मंगत सिंह के रूप में बताई जो की उस समय अपने क्षेत्र में पुनः लौट रहा था। वह उस समय महुआ इसरदा क्षेत्र का काफी प्रसिद्ध डकैत था जिसका ईसरदा में आज भी स्मारक है।
आर्काइव 2: 22 दिसंबर 1914 को नारायण सिंह जी और माधो सिंह जी रात्रि भोजन के बाद बाहर शिकार के लिए औदी की और गए वहा से लौटते समय काफी देर हो गई और रास्ते में उन्हें डकैतों द्वारा लूट लिया गया, जब वापिस महल आए तो महाराज ने कहा की नारायण सिंह आज तो चोखी करवाई, थे काई काम करो हो आपना राज में म्हे ही लूट गया तो जनता काई सुरक्षित है।
नारायण सिंह ने कहा महाराज बा समय पे थाकी जान ज्यादा जरुरी ही थे आराम करो मैं सुभा आऊं हूं
सुबह वे लूटे हुए समान और कुछ और दूसरे सामानों के साथ सर्वतो भद्र में थे। महाराज ने पूछा की ओ काई नारायण तो वे बोले म्हासू बच अर थाके राज्य में कुन जायलो। मैं रात अर समस्या जड़ सूं खत्म कर आयो।
जब चंद्रशेखर आजाद को ब्रिटिश पुलिस ढूंढ रही थी तो वह कुछ समय जयपुर में भी अज्ञातवास पर थे और उस समय वे उन्ही की हवेली में जून 1928 से जुलाई 29 तक काफी बार आते जाते रहे। परंतु उस समय तक उनका देहांत 1924 में हो चुका था।
इस तरह के अनकों लिखित वकाये, दिनचर्या और उनकी नियुक्तियों के वर्णन, राजपत्र नारायण निवास पुस्तकालय और कानोता ठिकाना पुस्तकालय में मौजूद है। आज उस समय का उनके द्वारा छोड़ा गया बाग जहा आज RBI है कानोता बाग कहलाता है।
आज यह नारायण निवास और कैसल कानोता, कानोता होटल समूह द्वारा व्यवस्थित किए जा रहे है और इनके इन्ही के परिवार से संबंधित है। प्रताप सिंह कानोता जो की अभी नए ठाकुर (Formally) बनेंगे, पोलो के एक अच्छे खिलाड़ी (+2 Handicap) के रूप में उभर रहे है।